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हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय और 10 कविताएँ हिंदी में (Harivansh Rai Bachchan 10 Poems in Hindi | Harivansh Rai Bachchan ka jivan parichay)

Harivansh Rai bachchan famous poem and jivan parichay; aaravhindi.com

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Harivansh Rai Bachchan  ka jivan parichay | हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय

हरिवंश राय बच्चन: भारत के प्रसिद्ध कवि

शुरुआती जीवन और पृष्ठभूमि: हरिवंश राय बच्चन, भारत के प्रसिद्ध कवियों में से एक, 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश, भारत के प्रतापगढ़ जिले के बाबूपत्ती गांव में पैदा हुए। उनके पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव और माँ सरस्वती देवी थे। उनके परिवार ने बाद में “बच्चन” उपनाम अपनाया, जो साहित्यिक उत्कृष्टता और भव्यता के साथ जुड़ गया।

शिक्षा और साहित्यिक प्रतिस्पर्धा: हरिवंश राय बच्चन ने अपनी प्राथमिक शिक्षा इलाहाबाद में पूरी की और बाद में उच्च अध्ययन के लिए प्रसिद्ध इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। उन्होंने अपनी अंग्रेजी साहित्य में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री पूरी की, जिससे उन्हें कविता, साहित्य और भाषाओं में गहरा रुचि हुआ।

कॉलेज के दिनों में, इस उभारते हुए कवि ने कविता रचना की शुरुआत की, विभिन्न शैलियों और विषयों की खोज की। उन्हें सुमित्रानंदन पंत और रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जैसे प्रसिद्ध कवियों से प्रभावित किया गया था। हरिवंश राय बच्चन की शुरुआती रचनाएं मनुष्य की भावनाओं, सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों और जीवन की मूल तत्व की समझ को प्रकट करती थीं।

प्रख्याति की यात्रा: हरिवंश राय बच्चन की कविता चमत्कारिक रूप से साहित्यिक वर्गों का ध्यान आकर्षित करने लगी और उनकी छंद दर विभागीय पाठकों के दिलों में संवेदना का संचार करने लगी। 1935 में उनकी रचना “मधुशाला” के प्रकाशन से उन्हें महत्वपूर्ण प्रशंसा मिली। यह कविता संख्या चौपाईयों या “रुबाइयाँ” के रूप में लिखी गई थी और इससे उन्हें एक समर्पित फैन फॉलोइंग प्राप्त हुई।

उनकी मशहूरी के साथ, बच्चन ने मानव अनुभवों और आध्यात्मिकता में खुद को डुबोया, जिससे उनकी कविताएं लोगों के दिलों को छु गई। उनकी विशिष्ट शैली, जो पारंपरिक तत्वों को आधुनिक परिवेश के साथ मिलाती थी, उन्हें एक कविगंधर्व के रूप में स्थापित कर दिया।

हिंदी साहित्य में योगदान: हरिवंश राय बच्चन का हिंदी साहित्य में योगदान बहुआयामी और अपूर्व था। उनकी कविता में जटिल भाषा का उपयोग, समृद्ध रूपक और गहरे दार्शनिक दृष्टिकोन से भरी थी। पारंपरिक चित्रणों को आधुनिक भावनाओं से कुशलता से जोड़ने में उनकी कविता अपार प्रशंसा पाई।

“मधुशाला” के अलावा, उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएं “निशा निमंत्रण”, “दो चट्टानें”, “बसेरे से दूर”, और “क्या भूलूं क्या याद करूं” शामिल थीं। उनकी कविता संघर्ष, प्रेम, प्रकृति, और मानवीय स्थिति जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करती थी।

प्रभाव और सम्मान: हरिवंश राय बच्चन की कविता भाषाई सीमाओं को पार करती थी, और उनकी रचनाएं विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवादित होकर वैश्विक प्रशंसा प्राप्त करती थीं। उनकी कविताएं न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक समारोहों में भी उच्चारण के लिए चुनी जाती थीं।

उन्हें विभिन्न पुरस्कार और सम्मानों से भरपूर सम्मानित किया गया, जिसमें पद्म भूषण भी शामिल था, जो भारत का एक प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान है। उनकी कविताएं विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उच्चारण के लिए चुनी जाती थीं और साहित्यिक समारोहों में गीत व शेरों के रूप में प्रयोग किया जाता था।

व्यक्तिगत जीवन: 1941 में, हरिवंश राय बच्चन ने तेजी बच्चन से विवाह किया, और उन्हें दो बेटे, अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन की खुशियाँ मिलीं। भारतीय साहित्य में प्रसिद्ध होने के बावजूद, उन्हें वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका कला और परिवार के प्रति अटूट समर्पण ने उन्हें समर्थ बनाया रखा।

विरासत: 2003 में उनके निधन के बाद भी, हरिवंश राय बच्चन की विरासत जीवंत रहती है। उनकी कविताएं भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बनी हुई हैं, जो स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं, विभिन्न परिषदों में उच्चारण होती हैं, और कविता प्रेमियों द्वारा आदर की जाती हैं।

उनके उत्कृष्ट कवितायें आगामी लेखकों और पाठकों को प्रेरित करती हैं। जब तक उनकी चारों ओर से कविताएं सुनाई जाएंगी, इस महान कवि की स्मृति जीवित रहेगी, भारतीय साहित्य की प्राचीन विरासत को चमकाते हुए।

10 Famous harivansh rai bachchan poems in Hindi | हरिवंश राय बच्चन की 10 कविताएँ हिंदी में

तुम तूफान समझ पाओगे: harivansh rai bachchan poems in Hindi

तुम तूफान समझ पाओगे?
गीले बादल, पीले रजकण, सूखे पत्ते, रूखे तृण घण लेकर चलता करता हरहर । 

इसका गान समझ पाओगे?

तुम तूफान समझ पाओगे?
गंध-भरा यह मंद पवन था, लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?

तुम तूफान समझ पाओगे?
तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ, नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
जाता है अज्ञात दिशा को!

हटो विहंगम, उड़ जाओगे! तुम तूफान समझ पाओगे?

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती: Harivansh Rai bachchan famous poem

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना उसे ना अखरता है।

आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, जा जाकर खाली हाथ लौट कर आता है।

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में, बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।

जब तक न सफल हो जाओ, नींद चैन को त्यागो तुम, यूं संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।

कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की, कभी हार नहीं होती।

अँधेरे का दीपक: harivansh rai bachchan poems in Hindi

है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है?
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था,

भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था,
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा,

स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर,

कंकड़ों को एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है?

बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक,

मनोरम प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम,

वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली,
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई, कालिमा तो दूर,

छाया भी पलक पर थी न छाई,
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती,

थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई,
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना,

पर अथिरता पर समय की मुस्कुराना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा,
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा,

एक अंतर से ध्वनित हो दूसरे में जो निरंतर,
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा,

अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही,
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है?

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए, पास क्या आए,

हृदय के बीच ही गोया समाए,
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर

एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए,
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे,

खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना,
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना,

नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका,
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना,

जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से,
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है?

है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है?

था तुम्हें मैंने रुलाया:  Harivansh Rai bachchan famous poem

हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!

था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था, एक क्षण को भी,

सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर,

क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

जो बीत गई सो बात गई: harivansh rai bachchan poems in Hindi

जो बीत गई सो बात गई जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वह डूब गया तो डूब गया ।

अम्बर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे ।

जो छूट गए फिर कहाँ मिले, पर बोलो टूटे तारों पर अम्बर कब शोक मनाता है ।

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम, थे उसपर नित्य निछावर तुम, वह सूख गया तो सूख गया ।

मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ, मुझाई है कितनी वल्लरियाँ ।

जो मुझाई फिर कहाँ खिली, पर बोलो सूखे फूलों पर, कब मधुवन शोर मचाता है ।

जो बीत गई सो बात गई, जो बीत गई सो बात गई।

जीवन में मधु का प्याला था, तुमने तन मन दे डाला था, वह टूट गया तो टूट गया ।

मदिरालय का आँगन देखो, कितने प्याले हिल जाते हैं, गिर मिट्टी में मिल जाते हैं ।

जो गिरते हैं ओ कब उठते हैं, पर बोलो टूटे प्याले पर, कब मदिरालय पछताता है ।

जो बीत गई सो बात गई ।

मृदु मिट्टी के हैं बने हुए, मधु घट फूटा ही करते हैं, लघु जीवन लेकर आए हैं प्याले टूटा ही करते हैं ।

फिर भी मदिरालय के अन्दर, मधु के घट हैं मधु प्याले हैं, जो मादकता के मारे हैं ।

मधु लूटा ही करते हैं वह कच्चा पीने वाला है ।

जिसकी ममता घट प्यालों पर, जो सच्चे मधु से जला हुआ, कब रोता है चिल्लाता है ।

जो बीत गई सो बात गई, जो बीत ग‌ई सो बात गई ।

अग्निपथ : Harivansh Rai bachchan famous poem

वृक्ष हों भलें खड़े, हों घने, हों बड़ें, ए

क पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

तू न थकेगा कभी! तू न थमेगा कभी! 

तू न मुड़ेगा कभी!—कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

यह महान दृश्य है— चल रहा मनुष्य है, अ

श्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

आज मुझसे दूर दुनिया: harivansh rai bachchan poems in Hindi

भावनाओं से विनिर्मित, 

कल्पनाओं से सुसज्जित, 

कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनिया!

आज मुझसे दूर दुनिया!

‘बात पिछली भूल जाओ, 

दूसरी नगरी बसाओ’ प्रेमियों के प्रति रही है, 

हाय, कितनी क्रूर दुनिया!

आज मुझसे दूर दुनिया!

वह समझ मुझको न पाती, 

और मेरा दिल जलाती, 

है चिता की राख कर मैं माँगती सिंदूर दुनिया!

आज मुझसे दूर दुनिया!

स्वप्न था मेरा भयंकर: Harivansh Rai bachchan famous poem

रात का-सा था अंधेरा, बादलों का था न डेरा,
किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर!
स्वप्न था मेरा भयंकर!

क्षीण सरिता बह रही थी,
कूल से यह कह रही थी-
शीघ्र ही मैं सूखने को,

भेंट ले मुझको हृदय भर!
स्वप्न था मेरा भयंकर!

धार से कुछ फासले पर
सिर कफ़न की ओढ़ चादर
एक मुर्दा गा रहा था बैठकर जलती चिता पर!
स्वप्न था मेरा भयंकर

आत्मपरिचय: harivansh rai bachchan poems in Hindi

जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!

मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्‍यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता
मैं स्‍वप्‍नों का संसार लिए फिरता हूँ!

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्‍न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्‍त बहा करता हूँ!

मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,
उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!

कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?
नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्‍वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्‍वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,
मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्‍यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ ।

नीड़ का निर्माण: Harivansh Rai bachchan famous poem

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,

रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आ‌ई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,

रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,

हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगा‌ए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;

बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती, 

एक चिड़िया चोंच में तिनका
लि‌ए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती ।।

नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर ।।

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर ।

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