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सभी नौ देवियों के व्रत की कथा और भजन के बोल हिंदी में | Navratri ki Vrrat Katha, Navratri Bhajan Lyrics in Hindi

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नौ देवियों के उपवास अनुष्ठान की कथा और भजन गीत:

हिंदू संस्कृति में, देवताओं की पूजा एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जिसमें बहुत सारे अनुष्ठान और समारोह आध्यात्मिक परिदृश्य को सुशोभित करते हैं। इनमें से, नौ देवियों को समर्पित व्रत, जिन्हें “नवरात्रि” के नाम से जाना जाता है, एक दीप्तिमान रत्न की तरह चमकते हैं। यह लेख नवरात्रि व्रत के पीछे की मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानी पर प्रकाश डालता है और इस पवित्र अनुष्ठान के साथ मंत्रमुग्ध कर देने वाले हिंदी भजन गीत प्रस्तुत करता है। हमारे साथ एक ऐसी यात्रा में शामिल हों जो न केवल धार्मिक महत्व बल्कि नौ दिव्य देवियों की पूजा में अंतर्निहित समृद्ध सांस्कृतिक और संगीत विरासत का भी पता लगाती है।

1. देवी शैलपुत्री:

देवी शैलपुत्री व्रत कथा:

कृतयुग के युग में, घने जंगल में एक भव्य उत्सव हो रहा था जहाँ देवता अपने पूज्य भगवान शिव को समर्पित एक भव्य पूजा (पूजा) कर रहे थे। इस उत्सव के दौरान, भगवान शिव ने अपनी सक्षम और समर्पित पत्नी, पार्वती से कहा, “हे पार्वती, तुमने मेरी भक्ति और पूजा के लिए सब कुछ त्याग दिया है।”

पार्वती ने उत्तर दिया, “आपकी भक्ति और पूजा मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है; मेरे सामने मेरे लिए कुछ भी नहीं है।”

जवाब में, भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्होंने अपने अवतार के रूप में जन्म लिया, जो शैलपुत्री के नाम से जानी गईं। उनका जन्म हिमालय (पहाड़ों के राजा) की बेटी के रूप में हुआ था और इसलिए उन्हें “शैलपुत्री” नाम मिला, जिसका अर्थ है “पहाड़ की बेटी।”

शैलपुत्री का विवाह

एक दिन शैलपुत्री ने अपने माता-पिता से व्रत रखने और अपने लिए जीवनसाथी ढूंढने की इच्छा व्यक्त की। उसके माता-पिता उसकी इच्छा से अवगत थे और उन्होंने इसे पूरा करने का फैसला किया। उन्होंने उसका विवाह भगवान शिव के साथ तय किया।

शैलपुत्री का आशीर्वाद

देवी शैलपुत्री को बैल पर सवार और एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल पकड़े हुए दर्शाया गया है। नवरात्रि के पहले दिन उनकी पूजा की जाती है और ऐसा माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से उनके भक्तों को शक्ति, साहस और समृद्धि मिलती है। उन्हें दिव्य स्त्री ऊर्जा का अवतार भी माना जाता है।

भक्त देवी शैलपुत्री का आशीर्वाद पाने और नवरात्रि के पहले दिन की ऊर्जा का आह्वान करने के लिए उनकी पूजा करते हैं, जो उन्हें समर्पित है। यह दिन नवरात्रि के नौ दिवसीय त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है, जिसके दौरान देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की बड़ी भक्ति और उत्साह के साथ पूजा की जाती है।

देवी शैलपुत्री आरती Lyrics हिन्दी में:

जय शैलपुत्री माता
मैया जय शैलपुत्री माता ।
रूप अलौकिक पावन
शुभ फल की दाता ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

हाथ त्रिशूल कमल तल
मैया के साजे ।
शीश मुकुट शोभामयी
मैया के साजे ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

दक्षराज की कन्या
शिव अर्धांगिनी तुम ।
तुम ही हो सती माता
पाप विनाशिनी तुम ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

वृषभ सवारी माँ की
सुन्दर अति पावन ।
सौभाग्यशाली बनता
जो करले दर्शन ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

आदि अनादि अनामय
तुम माँ अविनाशी ।
अटल अनत अगोचर
अतुल आनंद राशि ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

नौ दुर्गाओं में मैया
प्रथम तेरा स्थान ।
रिद्धि सिद्धि पा जाता
जो धरता तेरा ध्यान ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

प्रथम नवरात्रे जो माँ
व्रत तेरा धरे ।
करदे कृपा उस जन पे
तू मैया तारे ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

मूलाधार निवासिनी
हमपे कृपा करना ।
लाल तुम्हारे ही हम
द्रष्टि दया रखना ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

करुणामयी जगजननी
दया नज़र कीजे ।
शिवसती शैलपुत्री माँ
चरण शरण लिजे ।।

जय शैलपुत्री माता ।।

2. मां ब्रह्मचारिणी:

मां ब्रह्मचारिणी व्रत कथा:

मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था। नारदजी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया, ताकि वे भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त कर सकें। कठोर तप के कारण उनका ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी नाम पड़ा। भगवान शिव की आराधना के दौरान उन्होंने 1000 वर्ष तक केवल फल-फूल खाए तथा 100 वर्ष तक शाक खाकर जीवित रहीं। कठोर तप से उनका शरीर क्षीण हो गया। उनक तप देखकर सभी देवता, ऋषि-मुनि अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि आपके जैसा तक कोई नहीं कर सकता है। आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगा। भगवान शिव आपको पति स्वरूप में प्राप्त होंगे।

मां ब्रह्मचारिणी आरती Lyrics हिन्दी में:

जय ब्रम्चारिणी माँ
मैया जय ब्रम्चारिणी माँ ।
अपने भक्त जानो पर
करती सदा दया ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

दर्शन अनुपम मधुरं
साधना रत रहती ।
शिव जी की आरधना
मैया सदा करती ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

बाहिने हाथ कमंडल
दाहिने में माला ।
रूप जो त्रिमय अद्भुत
सुख देने वाला ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

देवऋषि मुनि साधु
गुण माँ के गाते ।
शक्ति स्वरूपा मैया
सबकुछ तुझको ध्याते ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

संजम तब वैराग्य
प्राणी वो पाता ।
ब्रम्चारिणी माँ को
निशिदिन जो ध्याता ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

नवदुर्गाओं में मैया
दूजा तुम्हारा स्वरूप ।
स्वेत वस्त्र धारिणी माँ
ज्योतिर्मय तेरा रूप ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

दूजे नवरात्रे मैया
जो तेरा व्रत धरे ।
करके दया जगजननी
तू उसको तारे ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

शिव प्रिय शिवा ब्राह्मणी
हमपे दया करियो ।
बालक है तेरे ही
दया दृष्टि रखियो ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

शरण तिहारी आये
ब्रम्हाणी माता ।
करुणा हमपे दिखाओ
शुभ फल की दाता ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

माँ ब्रम्चारिणी की आरती
जो कोई गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावे ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ ।।

जय ब्रम्चारिणी माँ
मैया जय ब्रम्चारिणी माँ ।
अपने भक्त जानो पर
करती सदा दया ।।

3. देवी चंद्रघंटा:

माता चंद्रघंटा की व्रत कथा:

बहुत समय पहले जब असुरों का आतंक बढ़ गया था। तब उन्हें सबक सिखाने के लिए मां दुर्गा ने अपने तीसरे स्वरूप में अवतार लिया था। दैत्यों का राजा महिषासुर, राजा इंद्र का सिंहासन हड़पना चाहता था। जिसके लिए दैत्यों की सेना और देवताओं के बीच में युद्ध छिड़ गई थी। वह स्वर्ग लोक पर अपना राज कायम करना चाहता था। जिसके वजह से सभी देवता परेशान थे। सभी देवता अपनी परेशानी लेकर त्रिदेवों के पास गए। देवताओं की बात को सुनने के बाद तीनों को ही क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई। उससे एक देवी उत्पन्न हुईं।

जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिए। देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया।  इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची। मां का ये रूप देखकर महिषासुर को ये आभास हो गया कि उसका काल आ गया है। महिषासुर ने माता रानी पर हमला बोल दिया। मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया। इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की।

देवी चंद्रघंटा आरती Lyrics हिन्दी में:

जय चंद्रघंटा माता ।
जय चंद्रघंटा माता ।।

अपने सेवक जन की ,
अपने सेवक जन की ।
शुभ फल की दाता ,
जय चंद्रघंटा माता ।।

नवरात्री के तीसरे दिन ,
चंद्रघंटा माँ का ध्यान ।
मस्तक पर है अर्ध चंद्र ,
मंद मंद मुस्कान ।।

जय चंद्रघंटा माता ।।

अस्त्र शस्त्र है हाथो में ,
और खडग संग बाण ।
घंटे की शक्ति से ,
हरती दुष्टो के प्राण।।

जय चंद्रघंटा माता ।।

सिंह वाहिनी दुर्गा ,
चमके स्वर्ण शरीर ।
करती विपदा शांति ,
हरे भक्त की पीर ।।

जय चंद्रघंटा माता ।।

मधुर वाणी को बोलकर ,
सबको देती ज्ञान ।
जितने देवी देवता ,
सभी करे सम्मान ।।

जय चंद्रघंटा माता ।।

अपने शांत स्वभाव से ,
सबका रखती ध्यान।
भव सागर में फसा हूँ ,
करो माता कल्याण ।।

जय चंद्रघंटा माता ।।

अपने सेवक जन की ,
अपने सेवक जन की ।
शुभ फल की दाता ,
जय चंद्रघंटा माता ।।

अपने सेवक जन की ,
अपने सेवक जन की ।
शुभ फल की दाता ,
जय चंद्रघंटा माता ।।

जय चंद्रघंटा माता ।।

4. देवी कुष्मांडा:

देवी कुष्मांडा हिंदू देवी दुर्गा के रूपों में से एक हैं, और उनकी पूजा नवरात्रि के त्योहार के दौरान की जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं में उन्हें ब्रह्मांड का निर्माता माना जाता है। “कुष्मांडा” नाम दो संस्कृत शब्दों से लिया गया है: “कू,” जिसका अर्थ है “थोड़ा,” और “उष्मा,” जिसका अर्थ है “गर्मी” या “ऊर्जा।” इस प्रकार, कुष्मांडा को अक्सर गर्मी और ऊर्जा उत्सर्जित करने वाली देवी के रूप में चित्रित किया जाता है।

कुष्मांडा माता की व्रत कथा:

अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से जाना गया। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां कूष्मांडा का मतलब कुम्हड़ा से है। ऐसी मान्यता है मां कूष्मांडा ने संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए अवतार लिया था। इनका वाहन सिंह है। मान्यता है कि इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में स्थित है। मां के इस स्वरूप की उपासना से आयु, यश और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

देवी कुष्मांडा आरती Lyrics हिन्दी में:

माँ आरती तेरी गाते ,
मैया आरती तेरी गाते ।
कुष्मांडा महामाया ,
हम तुमको ध्याते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

हे जगदम्बे दयामयी ,
आदि स्वरूपा माँ ।
देव ऋषि मुनि ज्ञानी,
गुण तेरे गाते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

कर ब्रहानन्द की रचना ,
कुष्मांडा कहलायी ।
वेद पुराण भवानी,
सब यही बतलाते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

सूर्य लोक निवाशिनी ,
तुमको कोठी प्रणाम ।
सम्मुख तेरे पाप और ,
दोष ना टिक पाते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

अष्ट भुजे महाशक्ति ,
सिंह वाहिनी है तू ।
भाव सिंधु से तारते ,
दर्शन जो पाते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

अष्ट सिद्दियों नो निधियो ,
हाथ तेरे माता ।
पा जाते है सहज ही ,
जो तुमको ध्याते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

सस्त्र विधि से विधिवत ,
जो पूजन करते ।
आदि शक्ति जगजननी ,
तेरी दया पाते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

नवदुर्गो में मैया ,
चौथा स्थान तेरा ।
चौथे नवरात्रे को ,
भक्त तुझे ध्याते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

आधी व्याधि सब हरके ,
सुख समृद्धि दो ।
हे जगदम्बे भवानी ,
इतनी दया चाहते ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

कुष्मांडा जी की आरती ,
जो कोई गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी ,
मनवांछित फल पावे ।।

माँ आरती तेरी गाते ।।

माँ आरती तेरी गाते ,
मैया आरती तेरी गाते ।
कुष्मांडा महामाया ,
हम तुमको ध्याते ।।

5. माँ स्कंदमाता:

“माँ स्कंदमाता” हिंदू देवी दुर्गा का पाँचवाँ रूप है, जिसकी पूजा नवरात्रि उत्सव के पाँचवें दिन की जाती है। इस रूप में, उन्हें भगवान कार्तिकेय की माँ के रूप में दर्शाया गया है, जिन्हें स्कंद या मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है, जो युद्ध और विजय के देवता हैं।

स्कंदमाता की व्रत कथा:

पौराणिक मान्यता के अनुसार तारकासुर नाम के एक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उसकी कठोर से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए। तारकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा। इस पर ब्रह्मा जी ने तारकासुर को समझाया कि जिसने जन्म लिया है उसको मरना ही पड़ेगा। इस पर तारकासुर ने शिवजी के पुत्र के हाथों मृत्यु का वरदान मांगा, क्योंकि वह सोचता था कि शिवजी का कभी विवाह नहीं होगा और विवाह नहीं से पुत्र भी नहीं होगा। ऐसे में उसकी मृत्यु भी नहीं होगी।

वरदान मिलने पर तारकासुर जनता पर अत्याचार करने लगा और लोग ने शिवजी के पास जाकर तारकासुर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। फिर शिवजी ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय पैदा हुए। कार्तिकेय ने बड़ा होने पर राक्षस तारकासुर का वध किया। भगवान स्कंद यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। पुराणों में स्कंदमाता की कुमार और शक्ति नाम से महिमा का वर्णन है।

माँ स्कंदमाता आरती Lyrics हिन्दी में:

जय स्कन्द माता ,
ॐ जय स्कन्द माता ।
शक्ति भक्ति प्रदायिनी,
सब सुख की दाता ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

कार्तिकेय की हो माता ,
शंभू की शक्ति ।
भक्तजनों को मैया,
देना निज भक्ति ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

चार भुजा अति सोहे ,
गोदी में स्कन्द ।
द्या करो जगजननी,
बालक हम मतिमन्द ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

शुभ्र वर्ण अति पावन ,
सबका मन मोहे ।
होता प्रिय माँ तुमको,
जो पूजे तोहे ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

स्वाहा स्वधा ब्रह्माणी ,
राधा रुद्राणी ।
लक्ष्मी शारदे काली,
कमला कल्याणी ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

काम क्रोध मद ,
मैया जगजननी हरना ।
विषय विकारी तन मन,
को पावन करना ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

नवदुर्गो में पंचम ,
मैया स्वरूप तेरा ।
पाँचवे नवरात्रे को,
होता पूजन तेरा ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

तू शिव धाम निवासिनी,
महाविलासिनी तू ।
तू शमशान विहारिणी,
ताण्डव लासिनी तू ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

हम अति दीन दुखी माँ,
कष्टों ने घेरे ।
अपना जान द्या कर,
बालक हैं तेरे ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

स्कन्द माता जी की आरती,
जो कोई गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी,
मनवांछित फल पावे ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

जय स्कन्द माता ,
ॐ जय स्कन्द माता ।
शक्ति भक्ति प्रदायिनी,
सब सुख की दाता ।।

ॐ जय स्कन्द माता ।।

6. माँ कात्यायनी देवी:

माँ कात्यायनी देवी दुर्गा का छठा रूप हैं, और उनकी पूजा भारत में नवरात्रि उत्सव का एक अभिन्न अंग है। वह अपनी योद्धा जैसी उपस्थिति के लिए जानी जाती है और उसे शेर की सवारी करते हुए, अपनी कई भुजाओं में विभिन्न हथियार पकड़े हुए दिखाया गया है।

कात्यायिनी माता की व्रत कथा:

कत नामक एक प्रसिद्द महर्षि थे, उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्द महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत अधिक बढ़ गया था ।

तब भगवान ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों ने अपने-अपने तेज़ का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को प्रकट  किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कात्यायनी कहलाईं।

माँ कात्यायनी देवी आरती Lyrics हिन्दी में:

जय कात्यायिनी माता,
जय कात्यायिनी माता ।
सुख सृष्टि में पाये ,
जो तुमको ध्याता ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

आदि अनादि अनामय ,
अविचल अविनाशी ।
अटल अनत अगोचर ,
अध् आनंद राशि ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

लाल ध्वजा नभ चमक ,
मंदिर पे तेरे ।
जग मग ज्योति माँ जगती ,
भक्त रहे घेरे ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

हे सतचित सुखदायी ,
शुद्ध ब्रह्म रूपा ।
सत्य सनातन सुन्दर ,
शक्ति यश रूपा ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

नवरात्री का छठा है ,
ये कात्यायिनी रूप ।
कलयुग में शक्ति बनी ,
दुर्गा मोक्ष स्वरूप ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

कात्यायन ऋषि पे किया ,
माँ ऐसा उपकार ।
पुत्री बनके आ गयी ,
शक्ति अनोखी धर ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

देव की रक्षा माँ करे ,
लिया तभी अवतार ।
ब्रज मंडल में हो रही ,
आपकी जय जयकार ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

श्री कृष्णा ने भी किया ,
अम्बे आपका जाप ।
दया दृष्टि हम पर करो ,
बारम्बार प्रणाम ।।

जय कात्यायिनी माता ।।

7. मां कालरात्रि (महागौरी):

माँ कालरात्रि, जिन्हें महागौरी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू देवी दुर्गा के रूपों में से एक है, जिसे नवरात्रि के त्योहार के दौरान मनाया जाता है। दुर्गा की यह आठवीं अभिव्यक्ति उनके उग्र और शक्तिशाली स्वभाव के साथ-साथ अपने भक्तों के प्रति उनकी उदारता के लिए पूजनीय है।

कालरात्रि माता की व्रत कथा:

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुंड और रक्तबीज नाम राक्षसों ने भूलोक पर हाहाकार मचा दिया था। तब देवी दुर्गा ने चण्ड – मुंड का संहार किया। परन्तु जैसे ही उन्होंने रक्तबीज का संहार किया। तब उसका रक्त जमीन पर गिरते ही हज़ारों रक्तबीज उतपन्न हो गए। तब रक्तबीज के आतंक को समाप्त करने हेतु मां दुर्गा ने लिया था। मां कालरात्रि का स्वरुप मां कालरात्रि काल की देवी हैं। मां दुर्गा यह स्वरुप बहुत ही डरावना है।

माँ कालरात्रि आरती Lyrics हिन्दी में:

कालरात्रि माता ,
जय कालरात्रि माता ।
धन वैभव संपत्ति ,
की तुम ही दाता ।।

जय कालरात्रि माता ।।

रूप भयंकर तेरा ,
शक्ति महामाई ।
छवि लखते ही तुम्हारी ,
काल भी डर जाई ।।

जय कालरात्रि माता ।।

भूत प्रेत और दानव ,
निकट नहीं आते ।
खडग कटार के आगे ,
शत्रु नहीं टिक पाते ।।

जय कालरात्रि माता ।।

गर्धव वाहिनी मैया ,
कृपा जरा कीजो ।
निर्बल को माँ शक्ति ,
अपनी शरण दीजो ।।

जय कालरात्रि माता ।।

नो दुर्गाओं में भवानी ,
सातवा तेरा स्थान ।
महामाया महाकाली ,
शक्ति तेरी महान ।।

जय कालरात्रि माता ।।

सातवे नवरात्रे को ,
पूजी तुम जाती ।
मनवांछित फल देती ,
शक्ति तेरी महान ।।

जय कालरात्रि माता ।।

हे प्रचंड ज्वालमयी ,
हमपे दया करना ।
जानके सेवक अपना ,
दुःख विपदा हरना ।।

जय कालरात्रि माता ।।

चिंता हारना दाती ,
काल करे न वार ।
विनती इतनी सी माँ ,
कर लेना स्वीकार ।।

जय कालरात्रि माता ।।

लेकर आस शरण में ,
तेरी हम आये ।
सुना है खली दर से ,
ना तेरे कोई जाये ।।

जय कालरात्रि माता ।।

कालरात्रि माता ,
जय कालरात्रि माता ।
धन वैभव संपत्ति ,
की तुम ही दाता ।।

जय कालरात्रि माता ।।

8. माँ महागौरी- दुर्गा अष्टमी:

माँ महागौरी, जिन्हें देवी महागौरी के नाम से भी जाना जाता है, की पूजा नवरात्रि उत्सव के आठवें दिन की जाती है, जिसे दुर्गा अष्टमी के नाम से जाना जाता है। यह दिन हिंदू पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व रखता है और देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक, मां महागौरी की पूजा के लिए समर्पित है।

माँ महागौरी की व्रत कथा

पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवन शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने वर्षो तक कठिन तपस्या की। जिससे इनका शरीर एकदम काला पड गया था। वर्षो की कठिन तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते है और माता को स्वीकार करते है और माता को गंगा जल से धोते है। तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं अर्थात शंख, चन्द्र देव और कन्द के फूल के समान गोरी हो जाती है। देवी का रंग अत्यंत गोरा होने के कारण इनका नाम महागौरी पड़ा।

माँ महागौरी आरती Lyrics हिन्दी में:

महागौरी दया कीजे
जगजननी दया कीजे ।
उमा रमा ब्रम्हाणी
अपनी शरण लीजे ।।

महागौरी दया कीजे ।।

गौर वर्ण अति सोहे
वृषभ की असवारी ।
स्वेत वस्त्रो में मैया
लागे छवि प्यारी ।।

महागौरी दया कीजे ।।

सृष्टि रूप तुम्ही हो
शिव अंगी माता ।
भक्त तुम्हारे अनगिन
नित प्रतिगुण गाता ।।

महागौरी दया कीजे ।।

दक्ष के घर जन्मी तुम
ले अवतार सती ।
प्रगटी हिमाचल के घर
बने शिवा पार्वती ।।

महागौरी दया कीजे ।।

नवदुर्गो में मैया
आठवाँ तेरा स्वरूप ।
शिव भी मोहित हो गये
देख के तेरा रूप ।।

महागौरी दया कीजे ।।

आठवें नवरात्रे को
जो व्रत तेरा करे ।
पाता प्यार तुम्हारा
भव सिंधु वो तारे ।।

महागौरी दया कीजे ।।

वैद पुराण में महिमा
तेरी माँ अपरम्पार ।
हम अज्ञानी कैसे
पाए तुम्हारा पार ।।

महागौरी दया कीजे ।।

महागौरी महामाया
आरती तेरी गाते ।
करुणामयी दया कीजे
निशदिन तुझे ध्याते ।।

महागौरी दया कीजे ।।

शिव शक्ति महागौरी
चरण शरण कीजे ।
बालक जानके अपना
हमपे दया कीजे ।।

महागौरी दया कीजे ।।

महागौरी महामाया
आरती तेरी गाते ।
करुणामयी दया कीजे
निशदिन तुझे ध्याते ।।

महागौरी दया कीजे ।।

शिव शक्ति महागौरी
चरण शरण लीजे ।
बालक जानके अपना
हमपे दया कीजे ।।

महागौरी दया कीजे
जगजननी दया कीजे ।
उमा रमा ब्रम्हाणी
अपनी शरण लीजे ।।

महागौरी दया कीजे ।।

9. माँ सिद्धिदात्री:

मां सिद्धिदात्री की व्रत कथा:

देवी पुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था।  ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं।  संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्र के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। 

भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था।  इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। इस देवी का पूजन, ध्यान, स्मरण  हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।

मां सिद्धिदात्री आरती Lyrics हिन्दी में:

जय सिद्धिदात्री ,
ओम जय सिद्धिदात्री ।
सर्व सुखो की जननी ,
रिद्धि सिद्धिदात्री ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

अनिमा गरिमा लघिमा ,
सिद्धि तिहारी हाथ ।
तू अविचल महामाई ,
त्रिलोकी की नाथ ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

शुम्भ निशुम्भ विडारे ,
जग है प्रसिद्ध गाथा ।
शास्त्र भुजा यानि धरक ,
चक्र लियो हाथा ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

तेरी दया बिन रिद्धि ,
सिद्धि न हो पाती ।
सुख समृद्धि देती ,
तेरी दया पाती ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

दुःख दरिद्र विनाशिनी ,
दोष सभी हरना ।
दुर्गुणों को संघारके ,
पावन माँ करना ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

नवदुर्गो में मैया ,
नवम तेरा स्थान ।
नौवे नवरात्रे को ,
करे सब ध्यान ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

तुम ही जग की माता ,
तुम ही हो भरता ।
भक्तो की दुःख हरता ,
सुख संपत्ति करता ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

अगर कपूर की ज्योति ,
आरती तुम गाये ।
छोड़ के तेरा द्वार ,
और कहा जाये ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

सिद्धिदात्री माता ,
सब दुर्गुण हरना ।
अपना जान के मैया ,
हमपे कृपा करना ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

जय सिद्धिदात्री ,
ओम जय सिद्धिदात्री ।
सर्व सुखो की जननी ,
रिद्धि सिद्धिदात्री ।।

ओम जय सिद्धिदात्री ।।

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