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जाने रानी लक्ष्मी बाई के जीवन के बारे में | Essay on Rani Lakshmi Bai (500-700 words)

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Essay on Rani Lakshmi Bai: आज विश्व में हर तरफ महिलाओं के स्थान पर व्यापक बहस हो रही है l भारत भी इससे अछूता नहीं है l हमारे देश में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की चर्चा होती है, तो रानी लक्ष्मी बाई का स्मरण आ ही जाता है l महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई न सिर्फ एक महान नाम है, बल्कि वह एक आदर्श भी है, उन महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं l साथ ही उन अबलाओं के लिए भी जो समझती है कि वह कुछ नहीं कर सकती l

देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी l आज वह अपनी वीरता को लेकर कहानी बन चुकी है l रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी के अस्सी घाट में हुआ था l पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था l उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका रखा गया परंतु प्यार से उन्हें मनु पुकारा जाता था l

मनु जब मात्र 4 साल की थी तभी उनकी माता का देहांत हो गया l पत्नी के निधन के बाद उनके पिता मनु को लेकर झांसी चले गए l रानी लक्ष्मीबाई का बचपन उनके नाना के घर में बीता जहां उन्हें ‘छबीली’ कहकर पुकारा जाता था l केवल 12 साल की उम्र में उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ कर दिया गया l शादी के बाद झांसी की आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार हुआ और इसके बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई रख दिया गया l घोड़े चलाने और शास्त्र विद्या में निपुण रानी लक्ष्मी बाई ने झांसी के किले के अंदर ही एक सेना का गठन कर लिया था l जिसका संचालन वह समय मर्दानी पोशाक पहनकर करती थी l उनके पति गंगाधर राव यह सब देखकर आश्चर्यचकित थे l इस बीच रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया l मगर दुर्भाग्यवस कुछ ही महीनो बाद उनके पुत्र की मृत्यु हो गई l कहा जाता है कि उनके पुत्र की मृत्यु षड्यंत्र के तहत की गई थी l

पुत्र वियोग के आघात से दुखी होकर राजा गंगाधर राव ने 21 नवंबर 1835 को अपने प्राण त्याग दिए l इससे झांसी पूरी तरह शोक में डूब गई l इस बीच अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीति के चलते झांसी पर चढ़ाई कर दी l रानी ने तोपों से युद्ध करने की रणनीति बनाते हुए अपने विश्वासपात्र के नेतृत्व में तोपों को किले की सुरक्षा के लिए लगा दिया l

14 मार्च 1857 से 8 दिन तक तोप किले से आग उगलती रही l अंग्रेज सेनापति हूंरोज लक्ष्मीबाई की किलेबंदी देखकर दंग रह गया l रानी लक्ष्मीबाई रणचंडी का साक्षात रूप रखें, अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपनी पीठ पर दत्तक पुत्र दामोदर राव को बांधकर युद्ध करती रही l झलकारी बाई और सखियों ने भी रणभूमि में अपना खूब कौशल दिखाया l झांसी की मुट्ठी भर सेना ने रानी को सलाह दी कि वह कालपी की ओर चली जाए l अपने विश्वसनीय चार-पांच घुड़सवारों को लेकर रानी कालपी की चल पड़ी और अंग्रेजी सैनिक रानी का पीछा करते रहे l कैप्टन वॉकर ने उनका पीछा किया और उन्हें घायल कर दिया l

22 may 1857 को क्रांतिकारी को कालपी छोड़कर ग्वालियर जाना पड़ा l 17 जून को फिर युद्ध हुआ l रानी के भयंकर प्रहारों से अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा और महारानी की विजय हुई l लेकिन 18 जून को फिर अंग्रेजों से युद्ध हुआ l जिससे युद्ध का पलड़ा बिगड़ गया l रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पुत्र दामोदर राव को रामचंद्र देशमुख को सौंप दिया और वहां से जाने लगी l मगर सनरेखा नाले को उनका घोड़ा पार नहीं कर सका l वही एक सैनिक ने पीछे से रानी पर तलवार से ऐसा वार किया कि उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और आंख बाहर निकल आई l ऐसी घायल अवस्था में भी साहस का परिचय देते हुए l उन्होंने उस अंग्रेज सैनिक का काम तमाम कर दिया और फिर अपने प्राण त्याग दिए l 18 जून 1857 को बाबा गंगादास की कुटिया में जहां इस वीर महारानी ने प्राण त्यागे l वही चिता बनाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया l

रानी लक्ष्मीबाई ने छोटी सी उम्र में भी यह साबित कर दिया कि वह न सिर्फ सेनापति है बल्कि एक कुशल प्रशासक भी है l वह महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने की भी प्रबल पक्षधारी थी l उन्होंने अपनी सेवा में महिलाओं की भरती की थी l आज भी हमारे समाज में जो स्त्रियों को शस्त्र बलों में भेजने के खिलाफ हैं l उन सबके लिए रानी लक्ष्मीबाई एक ऐसा उदाहरण है जो प्रमाणित करता है की महिला चाहे तो कुछ भी मुकाम हासिल कर सकती हैं l

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